(मन में उठते हैं ढेरों ख्याल, उमड़ घुमड़ कर, इस बार हाइकु बन गए)
(1)
माटी समेटे
सागर की लहरें
सौंधी खुशबू ।
(2)
चाँदनी रात
नीम की छाँह तले
जलती आग ।
(3)
गरजे मेघ
भीग गया अंतर्मन
हवा है नम ।
(4)
उठा गगरी
थाम ले ये सागर
मेघ चंचल ।
माटी समेटे
सागर की लहरें
सौंधी खुशबू ।
(2)
चाँदनी रात
नीम की छाँह तले
जलती आग ।
(3)
गरजे मेघ
भीग गया अंतर्मन
हवा है नम ।
(4)
उठा गगरी
थाम ले ये सागर
मेघ चंचल ।
8 comments:
बढ़िया हैं जी। बधाई!
प्रकृति से प्रेम और प्रेम में विरोधाभास का सुन्दर रूप,
अति उत्तम
शुक्रिया अनूप जी और मीनाक्षी जी, आपने रचना पढ़ी तथा सराही. आभार.
अच्छे हैं!
गागर में सागर!
बहुत बढ़िया जी. बहुत बढ़िया लिखा है। सभी कविताएं जबरदस्त हैं।
चाँदनी रात
नीम की छाँह तले
जलती आग ।
बहुत सुंदर
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