Monday, April 07, 2008

पत्थर में प्रकटे प्राण


रक्त वर्ण कोंपलें
बादलों का स्नेह
हवा का स्पर्श
पत्थर में प्रकटे प्राण
सर्वत्र जीवन
सर्वत्र नियम

जीवन
व्यक्त करता
विकसित होता
पल पल खिलता
नन्हा सा...
निर्दोष सा...

यही, एक भाव है...
या स्वभाव.
या फिर इससे भी परे
एक प्रभाव है-
शब्दों का
स्पर्श का, औ
रूप, रस, गंध का.
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