Thursday, January 03, 2008

सुकून

बस थोड़ा सा सुकून मिल जाए। दिमाग़ भन्ना जाता है, उफ्फ यह शोर...कितना नोइस पोल्यूशन है यहाँ। पीं पीं होर्न बजता है गाड़ियों का। उसकी आवाज़ कानों पर नहीं हार्ट पर महसूस होती है। दूसरे फ्लोर की बालकोनी में खड़ी हुई चित्रा महानगर में कोई कोना शांति का खोज रही है। गली के छोर पर मिसेज वर्मा रिक्शे वाले से दो रूपये के लिये उलझी हुई हैं। उनके तर्क ऐसे लग रहे हैं जैसे मार्केटिंग में ताज़ा डिप्लोमा कर आईं हों। ओह कितना ज़ोर से बोलती हैं, आज पूरी गली को अपना हुनर दिखा देने की कोशिश में हैं। कोई किसी के बारे में नहीं सोचता, कितना चीखते हैं सभी। नीचे आलू प्याज वाले की आवाज़ ने अचानक ध्यान खींच लिया।
मकान मालकिन चित्रा को बोली -‘चलो उतर कर आलू, प्याज़ खरीद लाएँ।’
चित्रा ने दो किलो आलू, दो किलो प्याज खरीद लिये।
इतने में पीछे से दूसरा सब्जी वाला बोल पड़ा, ‘अरे दीदी, आज खाना क्या बनावेंगी। थोड़ी सब्जी तो ले लो। मटर, शलजम, बैंगन, गाजर और ये मशरूम और पालक बिल्कुल ताज़ा है।’
चित्रा मन ही मन सब्जी वाले की भी अच्छी मार्केटिंग से इम्प्रेस हो गई। दो, चार किलो सब्जी खरीद कर ऊपर जाने लगी कि सीढ़ियों पर मिसेज कपूर ने आँखों को बड़े ही अदब से नचाते हुए पूछा, ‘अरे चित्रा, बड़ी सब्जियाँ खरीदी जा रहीं हैं। रात को पार्टी शार्टी है क्या?’
‘यूँ बार बार एक एक सब्जी के लिये नीचे उतर कर आना मुझे बड़ा थका देता है इसलिये अब हफ्ते भर की सब्जी एक साथ खरीद ली बस।’
चित्रा सोचती रह गई कि कोई कुछ भी खरीदे, कुछ भी खाए, जैसे मर्जी रहे। लोग क्यों ताक झाँक करते हैं। घर से बाहर निकलो तो एक बार तो जरूर नज़र डालेंगे। मन ही मन सोचेंगे कि कहाँ जा रहे हैं। कहीं तो खुलापन हो, कहीं तो सुकून मिले। लोग अपने कौतुहल को शांत करने के लिये दूसरों की ज़िदगी में कितना दख़ल देते हैं। खुशबू से अंदाज़ लगाएँगे कि आज फलाने के घर क्या पका है। और जब उस पर भी क्षुधा शांत न हो तो पूछ भी लेंगे। सवाल पूछते हुए हिचकते भी नहीं... एक बार भी नहीं। कैसी ज़िंदगी जीते हैं लोग यहाँ।
अजी ज़िंदगी क्या, बस जी रहे हैं, साँसे ले रहे हैं और गौसिप का मसाला चाट रहे हैं।
इससे दूसरे व्यक्ति को कितनी परेशानी होती है इतना नहीं समझते लोग?
चित्रा सोचती जा रही थी और अपने आपको टेंशन में डालती जा रही थी।
पर टेंशन से क्या होता है, इसी सब से तो समाज बनता है। हम समाज का हिस्सा हैं तो हमसे लोग सवाल करेंगे ही और हमें जवाब भी देना होगा। सही सही बताना होगा कि घर में क्या पकाया है। पकाया का मतलब तो समझते हैं न, 'गौसिप’।
खैर कहानी आगे बढ़ गई है पर चित्रा तो कभी की कानों पर पिलो सेट कर के सो चुकी है। शायद उसे सुकून यहीं मिल सकता है।
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