Sunday, May 09, 2010

कुछ शाइरी माँ के नाम

यहाँ बाहरेन में इत्तफाक़ से हमारे एक पुराने परिचित मिल गए। कुछ ही दिन पहले उन्होंने अपने पिताजी डा. कन्हैयालाल राजपुरोहित की लिखी किताब 'खुशबू का सफर' दी। 'खुशबू का सफर' में दोहों और शाइरी का संकलन है। मातृ दिवस पर बहुत कुछ पढ़ने को मिला, दिल भावुक भी हो गया। माँ की कमी बहुत बार बहुत खलती है पर दिल बेबस हो जाता है। अपने बच्चों को देखती हूँ तो लगता है कि क्या वही प्यार इनके दिल में भी है जो मेरे दिल में मेरी माँ के लिए है। खैर, दिल चाहा इसलिए 'खुशबू का सफर' से माँ के लिए कुछ शेर मैं यहाँ आपके साथ शेयर कर रही हूँ-



मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार
-निदा फ़ज़्ली

इस तरह मेरे गुनाहों को धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है

ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है
-मुनव्वर राना

ऐ माँ तेरे चेहरे की झुर्रियों की क़सम
हर इक लकीर में जन्नत नज़र आती है
-अनवर ग़ाज़ी

हादसों से मुझे जिस शै ने बचाया होगा
वह मेरी माँ की दुआओं का साया होगा
-शम्स तबरेज़ी

घास में खेलता बच्चा पास बैठी माँ मुस्कुराती है
मुझे हैरत है क्यों दुनिया काबा-ओ-सोमनाथ जाती है
-अज्ञात


Thursday, May 06, 2010

किरणें रवि की ...




सूरज की लाली,
सिमटी और बदली

रंगों की चादर
आकाश में बिखरी

दिन चढ़ता रूप बदलता,
भाग रही धूप बावरी

परछाइयों पर फिर भी
खोज रहीं कुछ किरणें रवि की ...
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