पत्तों पर खुरदरी शाम जब गिरती है...
मैं चुपचाप
नदी किनारे पड़ी
रेत समेट लेती हूँ।
बौखलाई हुई
रात में
औंधे से आकाश में
उस खुशबू को
बिखेर देती हूँ।
अन्तस में प्रकाश की
किरणें उत्साह की
मदमस्त मुझे कर
ले चलीं
अनन्त सागर में
उज्ज्वल आँगन में
मौन पावन में...
…छोड़ चलीं...
किरणें प्रकाश की
लहरें उत्साह की
प्रतिमा मेरे प्रिय की।