Friday, May 13, 2011

मेरी शाम


पत्तों पर खुरदरी
शाम जब गिरती है...
मैं चुपचाप
नदी किनारे पड़ी
रेत समेट लेती हूँ।
बौखलाई हुई
रात में
औंधे से आकाश में
उस खुशबू को
बिखेर देती हूँ।

Monday, May 02, 2011

प्रतिमा मेरे प्रिय की









अन्तस में प्रकाश की

किरणें उत्साह की

मदमस्त मुझे कर

ले चलीं

अनन्त सागर में

उज्ज्वल आँगन में

मौन पावन में...

…छोड़ चलीं...

किरणें प्रकाश की

लहरें उत्साह की

प्रतिमा मेरे प्रिय की।



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