...और सामने खुला आकाश...
कुछ यूँ ही क्या सोचती हो जो ऐसा रच देती हो...महक यहाँ तक आती है ..
बहुत सुंदर चिंतन है । दरअस्ल, कविता यही तो है । बधाई
शुक्रिया मीनाक्षी और मनोज जी। प्रतिक्रिया पढ़ कर अच्छा लगा।
बहुत खूबसूरत भाव
चंद पंक्तियों में ही भावों की गहराइयाँ समेत कर उत्कृष्ट रचना की है.बधाई.
खुबसूरत अहसास ,और उनको अल्फाजों में वयां करना , बहुत सुंदर , बधाई | आपके ब्लाग पर पहली हाज़िरी है शायद ?
ला-जवाब" जबर्दस्त!!
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.बधाई.
दिलचस्प....
beautifully crafted !!
स्वागत है आप सभी का। धन्यवाद।
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11 comments:
कुछ यूँ ही क्या सोचती हो जो ऐसा रच देती हो...महक यहाँ तक आती है ..
बहुत सुंदर चिंतन है । दरअस्ल, कविता यही तो है । बधाई
शुक्रिया मीनाक्षी और मनोज जी। प्रतिक्रिया पढ़ कर अच्छा लगा।
बहुत खूबसूरत भाव
चंद पंक्तियों में ही भावों की गहराइयाँ समेत कर उत्कृष्ट रचना की है.बधाई.
खुबसूरत अहसास ,और उनको अल्फाजों में वयां करना , बहुत सुंदर , बधाई | आपके ब्लाग पर पहली हाज़िरी है शायद ?
ला-जवाब" जबर्दस्त!!
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
बधाई.
दिलचस्प....
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