Monday, May 02, 2011

प्रतिमा मेरे प्रिय की









अन्तस में प्रकाश की

किरणें उत्साह की

मदमस्त मुझे कर

ले चलीं

अनन्त सागर में

उज्ज्वल आँगन में

मौन पावन में...

…छोड़ चलीं...

किरणें प्रकाश की

लहरें उत्साह की

प्रतिमा मेरे प्रिय की।



3 comments:

मीनाक्षी said...

पावन अनुभूति...

arbuda said...

किशोर जी, शुक्रिया।
मीनाक्षी ये अनुभूति सचमुच पावन होती है। सही कहा।

संजय भास्‍कर said...

वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...

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