
मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार
-निदा फ़ज़्ली
इस तरह मेरे गुनाहों को धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है
ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है
-मुनव्वर राना
ऐ माँ तेरे चेहरे की झुर्रियों की क़सम
हर इक लकीर में जन्नत नज़र आती है
-अनवर ग़ाज़ी
हादसों से मुझे जिस शै ने बचाया होगा
वह मेरी माँ की दुआओं का साया होगा
-शम्स तबरेज़ी
घास में खेलता बच्चा पास बैठी माँ मुस्कुराती है
मुझे हैरत है क्यों दुनिया काबा-ओ-सोमनाथ जाती है
-अज्ञात
15 comments:
बहुत ही उम्दा व लाजवाब ।
बहुत ख़ूब...
‘मुनव्वर‘ माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
-मातृ दिवस की बहुत शुभकामनाएँ.
राना साहब का ही एक शेर है-
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक मां है जो मुझसे खफा नहीं होती।
मैने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आंसू
मुद्दतों मां ने नहीं धोया दुपट्टा अपना।
कमाल की रचनाएँ पढवाई है आपने!
bahut khub likha hai.
try my blog- jazbaattheemotions.blogspot.com
शुक्रिया सभी का,समीर जी और राजकुमार जी का भी धन्यवाद माँ पर लिखे शेर पढ़वाने का।
मां को याद करता आपका यह संग्रह बहुत अच्छा लगा। http://utsahi.blogspot.com गुल्लक
अरबुदा जी,
निदा फाज़ली जी की यह गज़ल भी पढि़ए-
मां
बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ ,
याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुँकनी जैसी माँ ।
बाँस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे ,
आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी माँ ।
चिड़ियों के चहकार में गूँजे राधा-मोहन अली-अली ,
मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंड़ी जैसी माँ ।
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में ,
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां ।
बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें जाने कहाँ गई ,
फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी माँ ।
बहुत खूब राजेश जी, शुक्रिया।
अर्बुदा.
shbdon me avykt hai maa
आदरणीया अर्बुदा जी
नमस्कार !
मां के प्रति आपकी भावनाओं को नमन है !
मेरे गीत की कुछ पंक्तियां आपको सादर समर्पित हैं -
हृदय में पीड़ा छुपी तुम्हारे , मुखमंडल पर मृदु - मुसकान !
पलकों पर आंसू की लड़ियां , अधरों पर मधु - लोरी - गान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां ! तुम पर तन मन धन बलिदान !
तुम पर जग न्यौछावर माता ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान!!
तू सर्दी - गर्मी , भूख - प्यास सह' हमें बड़ा करती है मां !
तेरी देह त्याग तप ममता स्नेह की मर्म कथा कहती है मां !
ॠषि मुनि गण क्या , देव दनुज सब करते हैं तेरा यशगान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान !!
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
Hi
I just cannot believe that you write so beautiful..
Your writing is as beautiful as your heart!!
Good Luck!!
"घास में खेलता बच्चा पास बैठी माँ मुस्कुराती है
मुझे हैरत है क्यों दुनिया काबा-ओ-सोमनाथ जाती है"
आभार
कमाल की रचनाएँ
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