पलकों के पीछे चुप चुप के सपना सलोना। रात भर आकार लेता, न जाने कब कहीं खो गया। पलकों में ही घुल गया, या, रौशनी से डर गया, बहुत ढूँढा फिर लगा, अपनी कहानी वो जी गया।
bahut der se aapki kavitayen padh raha hoon ..is kavita ne man ko kahin rok sa diya hai .. aap bahut accha likhte hai ...aapki kavitao ki bhaavabhivyakti bahut sundar hai ji ..
पलकों में ही घुल गया, या, रौशनी से डर गया,
ye pankhtiyan apne aap me kuch kahti hai ...
meri badhai sweekar kare,
dhanyawad.
vijay pls read my new poem : http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
पलकों के पीछे चुप चुप के सपना सलोना। रात भर आकार लेता, न जाने कब कहीं खो गया। पलकों में ही घुल गया, या, रौशनी से डर गया, बहुत ढूँढा फिर लगा, अपनी कहानी वो जी गया।
वाह......चित्र के साथ शब्द जैसे जीवित हो उठे हैं ......!!
30 comments:
bahut khubsurat jazbaat
ब्लॉगजगत मे वापिसी पर स्वागत... सपने की कहानी बेहद खूबसूरत लगी...
achchhi avivyakti hai. Mujhe pasand aai.
Navnit Nirav
सच में सपने अक्सर ऐसे ही होते है..जो बीच राह में सुबह होने तक न जाने कहाँ गुम.. हो जाते है..अच्छी रचना..
आप बहुत खूबसूरत लिखती हैं ...दिल में उतर गया ...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
अरसे बाद......आना हुआ .पर छोटी सी कविता बहुत कुछ कह गयी....
बहुत ख़ूब
चुप चुप नहीं
छुप छुप
आपके सपनों
की कहानी
चलती रहे
छुक छुक
इस सुंदर रचना के लिए बधाई की पात्र हैं.
सच में सपनों की एक अलग ही दुनिया होती है,
सुरमई, चम्पई, मनमोहक, आकर्षक सभी को लुभाती है.
साभार
हमसफ़र यादों का.......
bahut khoob..
achchi avivakti hai,karti rahain
नवगीत की पाठशाला में आपका लिखा सुंदर गीत पढ़ कर खिंचा चला आया ब्लौग पर..
आना व्यर्थ नहीं गया
मनमोहक कविता
Hi, I hve seen u on D blog last 6 m'th back, well hve read d's 1 nw, u r genius. I always like u r thoughts &.... everything u write.
bahut der se aapki kavitayen padh raha hoon ..is kavita ne man ko kahin rok sa diya hai .. aap bahut accha likhte hai ...aapki kavitao ki bhaavabhivyakti bahut sundar hai ji ..
पलकों में ही घुल गया,
या, रौशनी से डर गया,
ye pankhtiyan apne aap me kuch kahti hai ...
meri badhai sweekar kare,
dhanyawad.
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
सुंदर रचना
भावों की सुंदर अभिव्यक्ति.
क्या आप गर्भनाल से परिचित हैं? अगर नहीं तो कृपया ईमेल भेजें.
सादर
आत्माराम
एक माह हो गया ! कुछ नया आये !
पलकों के पीछे
चुप चुप के
सपना सलोना।
रात भर
आकार लेता,
न जाने कब कहीं
खो गया।
पलकों में ही घुल गया,
या, रौशनी से डर गया,
बहुत ढूँढा
फिर लगा,
अपनी कहानी
वो जी गया।
वाह......चित्र के साथ शब्द जैसे जीवित हो उठे हैं ......!!
आपका ब्लॉग देखा-पढ़ा-बांचा...और महसूस किया....अब बताऊँ....??बहुत ही अच्छा लिखती हो आप....सच....बाकी बाद में अभी जल्दी में हूँ....!!
सपने प्रायः यूँ ही नाज़ुक होते हैं
इन्हे सहेजना ज़रूरी है !
दिलकश अभिव्यक्ति !
शुभकामनाएँ
आज की आवाज
Nice post
bahut sundar rachna hai.
bahut pyara hai
bahut hi pyari..aapke jaisi:))
bahut sundar.......badhaiyaan.......
मासूम अहसास जो शब्दों में ढल गए हैं...शुभकामलाएँ..सूं ही लिखती रहें...
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
वाह! बहुत सुन्दर
i have never read a more beautiful poem on dream ever.
बहुत सुंदर - लाजवाब - बधाई
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