Monday, April 07, 2008

पत्थर में प्रकटे प्राण


रक्त वर्ण कोंपलें
बादलों का स्नेह
हवा का स्पर्श
पत्थर में प्रकटे प्राण
सर्वत्र जीवन
सर्वत्र नियम

जीवन
व्यक्त करता
विकसित होता
पल पल खिलता
नन्हा सा...
निर्दोष सा...

यही, एक भाव है...
या स्वभाव.
या फिर इससे भी परे
एक प्रभाव है-
शब्दों का
स्पर्श का, औ
रूप, रस, गंध का.

13 comments:

मीनाक्षी said...

बहुत खूब... शब्दों के रूप, रस और गन्ध से
ब्लॉग में भी प्रकटे प्राण... गतिशीलता बनी रहे..शुभकामनाएँ

Sanjeet Tripathi said...

सुंदर!!

डॉ .अनुराग said...

vah......bahut khoob..

Abhishek Ojha said...

सुंदर रचना !

पारुल "पुखराज" said...

waah...kitni pyaari panktiyaan

Anonymous said...

भाव का न हो अभाव
बने स्‍वभाव डाले प्रभाव
बड़ा विकट राग बदलेंगे
लगायेंगी पत्‍‍थर में आग.

अविनाश वाचस्‍पति

Unknown said...

यत्र-तत्र-सर्वत्र, जीवन ही जीवन !! - और भई गौरव से कहियेगा उनकी मेल नहीं मिली - (और उनका मेल ID भी नहीं है )- मनीष

arbuda said...

कविता और कविता के भाव को समझने और सराहने के लिये शुक्रिया। कोशिश तो यही रहती है कि ब्लाग को नियमित लिखूँ पर अपने जुड़वाँ बच्चों के साथ कुछ ज्यादा ही व्यस्तत हो जाती हूँ। आप सभी से प्रतिक्रिया पाकर अच्छा लगता है।

अमिताभ said...

sundar kriti .behad khoobsurat !!

Udan Tashtari said...

अरे वाह!! बहुत दिनों बाद दर्शन हुए.पुनः स्वागत है.

Anonymous said...

Hello. This post is likeable, and your blog is very interesting, congratulations :-). I will add in my blogroll =). If possible gives a last there on my blog, it is about the Smartphone, I hope you enjoy. The address is http://smartphone-brasil.blogspot.com. A hug.

अनूप भार्गव said...

सुन्दर अभिव्यक्ति है

Anonymous said...

बादलों का स्नेह.. हवा का स्पर्श.. पत्थर में प्रकटे प्राण........

bahoot sunder.....

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