रक्त वर्ण कोंपलें
बादलों का स्नेह
हवा का स्पर्श
पत्थर में प्रकटे प्राण
सर्वत्र जीवन
सर्वत्र नियम
बादलों का स्नेह
हवा का स्पर्श
पत्थर में प्रकटे प्राण
सर्वत्र जीवन
सर्वत्र नियम
जीवन
व्यक्त करता
विकसित होता
पल पल खिलता
नन्हा सा...
निर्दोष सा...
यही, एक भाव है...
या स्वभाव.
या फिर इससे भी परे
एक प्रभाव है-
शब्दों का
स्पर्श का, औ
रूप, रस, गंध का.
13 comments:
बहुत खूब... शब्दों के रूप, रस और गन्ध से
ब्लॉग में भी प्रकटे प्राण... गतिशीलता बनी रहे..शुभकामनाएँ
सुंदर!!
vah......bahut khoob..
सुंदर रचना !
waah...kitni pyaari panktiyaan
भाव का न हो अभाव
बने स्वभाव डाले प्रभाव
बड़ा विकट राग बदलेंगे
लगायेंगी पत्थर में आग.
अविनाश वाचस्पति
यत्र-तत्र-सर्वत्र, जीवन ही जीवन !! - और भई गौरव से कहियेगा उनकी मेल नहीं मिली - (और उनका मेल ID भी नहीं है )- मनीष
कविता और कविता के भाव को समझने और सराहने के लिये शुक्रिया। कोशिश तो यही रहती है कि ब्लाग को नियमित लिखूँ पर अपने जुड़वाँ बच्चों के साथ कुछ ज्यादा ही व्यस्तत हो जाती हूँ। आप सभी से प्रतिक्रिया पाकर अच्छा लगता है।
sundar kriti .behad khoobsurat !!
अरे वाह!! बहुत दिनों बाद दर्शन हुए.पुनः स्वागत है.
Hello. This post is likeable, and your blog is very interesting, congratulations :-). I will add in my blogroll =). If possible gives a last there on my blog, it is about the Smartphone, I hope you enjoy. The address is http://smartphone-brasil.blogspot.com. A hug.
सुन्दर अभिव्यक्ति है
बादलों का स्नेह.. हवा का स्पर्श.. पत्थर में प्रकटे प्राण........
bahoot sunder.....
Post a Comment