Sunday, February 03, 2008

हाईकु (त्रिपदम)

(1)
ढलती साँझ
नीड़ की तलाश में
भटके पंछी।



(2)
नदी का पानी
कल कल झरना
बहते हैं ना.






(3)
रुई के फाहे
बादलों पर छाए
वृक्ष नहाए.







(4)
भोर औ सांझ
करवट बदले
जीवन यही.

12 comments:

Anonymous said...

छोटी, सरल और सुन्दर कविता, प्रस्तुतिकरण उससे भी मनमोहक...

पारुल "पुखराज" said...

waah...bahut sundar

Udan Tashtari said...

बढ़िया है मगर हो कहाँ...दिखती ही नहीं?? क्या नाराजगी है जी?

Anonymous said...

bahut sundar

Unknown said...

बहुत अच्छे पद - [ चित्र भी ]

arbuda said...

शुक्रिया आप सभी का, हाईकु पसंद करने के लिये।
समीर जी, मेरी व्यस्तताओं को नाराज़गी ना कहिये, आप सभी का बड़प्पन है जो कम दिखती हूँ फिर भी याद रखते हैं।
शुक्रिया एक बार फिर।

अजय कुमार झा said...

arbuda jee,
saadar abhivaadan. pehlee hee baar mein aap ne behad prabhaavit kiya. aage padhte rehne ki ichha hai

Sandhya said...

bahut sundar rachnaye.. badai

Unknown said...

पर्व की शुभ कामनाएँ - मनीष

डॉ .अनुराग said...

bahut badhiya.

Anonymous said...

aapki tripadiyan bahut hi sunder hain. "rui ke faahe" acchha pratik hai. rachnaon mein dhaar hai. Badhai

Lils said...

bahut he sundar
zara yahan bhi tashrif laayen

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