तुम्हारा आना
आकर पास बैठ जाना ,
क्योंकि बात करने की
तुम्हें आदत नहीं ।
पर तुम्हारा
मेरी बातों पर ,
हंस देना ,
दिन भर की थकावट को देख
मुस्कुरा देना ,
और आंखों से ही दर्द पर
मरहम लगा देना ।
तुम्हारी इन छोटी छोटी
शांत हरकतों पर
मुझे अक्सर प्यार आजाता है ।
मेरे गुस्से को तुम्हारा
स्नेह मिल जाता है ।
और हमेशा ही
तुम्हारा मौन
मुझसे जीत जाता है ।
9 comments:
बहुत खूब, कविता पढ़कर जयशंकर प्रसाद की 'कामायानी' में लिखी उनकी कुछ पंक्तियाँ याद आ गई ।
"नारी , तुम केवल श्रद्धा हो, स्त्रोत पीयूष सी बहा करो"
धन्यवाद मीनाक्षी.इतनी बढ़िया प्रतिक्रिया पढ़ कर दिल खुश हो गया.
क्या बात है. बहुत ख़ूब.
बहुत पुरानी पोस्ट फिर से??
है बढ़िया. :)
वाह बहुत ही सुंदर रचना... बधाई..
उम्दा!!! ना जाने क्यों आपकी ये पंक्तिया पढ़ कर आंखो मी आंसू आ गए. मन भाव-बिभोर हो गया... ...और हमेशा ही
तुम्हारा मौन
मुझसे जीत जाता है ।
तुम्हारा मौन
मुझसे जीत जाता है ।
इश्वर करे ये मौन हमेशा जीतता रहे.....बहुत दिनों बाद पढ़ा आपको.......इन दिनों ब्लॉग लेखन कम है शायद ?
आपकी कविता वाकई में अच्छी लगी और...खैर शायद कविता पढ़ने के बाद जो महसूस कर रहा हूं उसे अभी व्यक्त नहीं कर पाऊं, और वैसे भी प्रसंग सहित व्याख्या-सी बुरी लगती है,
लेकिन आप लिखना जारी रखिए...
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है-
मुझे अक्सर प्यार आजाता है ।
मेरे गुस्से को तुम्हारा
स्नेह मिल जाता है ।
और हमेशा ही
तुम्हारा मौन
मुझसे जीत जाता है ।
बधाई स्वीकारें।
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