Wednesday, May 28, 2008

ये क्या हुआ?

अपनी गृहस्थी में इस कदर व्यस्त रहने लगी कि ब्लाग पर मौन हो गई। ब्लागजगत तो हमेशा याद आता रहता है परंतु फुरसत के पल अब कीमती हो गए हैं। आपका प्यार पा कर बहुत खुशी होती है। पर मौन से कोई इस तरह जीत जाएगा यह नहीं पता था। पिछले तीन दिन से सोच रही हूँ कि यह पोस्ट लिख भेजूँ, आज समय निकाल ही लिया। 26 की रात को प्रिय बेजी का फोन आया। मौन जीत जाता है उन्होंने सहजता से दोहरा दी, मैने पूछा- पुरानी पोस्ट पढ़ने का समय कहाँ से चुरा लिया, बेजी। बेजी बोलीं पुरानी नहीं ये तो आज की पोस्ट है। मेरा माथा ठनका भई मुझे तो याद नहीं कि मैने अपनी पुरानी कविता फिर से डाली हो। माजरा समझ नहीं आया। उसी समय ब्लागवाणी खोला तो सबसे ज़्यादा पढ़े गए में अपना नाम पाया। देख कर खुशी तो हुई साथ में अचम्भा भी कि ये क्या हुआ। लिंक खोला तो देखा अजी मेरी ही कविता पर मुझसे पहले उड़न तश्तरी पहुँच गई, मीत, कुश का एक खूबसूरत ख्याल, विचारों की ज़मीं, डा. अनुराग, संदीप जी, शोभा जी सभी विराजे हैं। प्रतिक्रियाएँ इतनी अच्छी लगी कि दिल खुश हो गया। कविता को आप सभी ने बहुत सराहा, इससे भी ऊपर आपने मेरी भावनाओं को समझा। समीर जी मुझे भी नहीं पता कि बहुत पुरानी पोस्ट फिर से कैसे। मैं कम लिख पाती हूँ फिर भी आप सभी मुझे याद रखते हैं। पर मेरी समझ में नहीं आया कि ये मौन कैसे टूटा। मेरी 20 जुलाई 2006 की कविता आज अचानक कैसे उभर आई और पुरानी तारीख़ पर कमेंट्स कैसे मिल गये, क्या कहने इस मौन के। खूब दिमाग दौड़ाया पर यह रहस्य नहीं सुलझा। क्या आप लोग बता सकते हैं कि ये क्या हुआ?
किशोर का यह गाना मेरी हालत बयान कर सकता है- आप भी सुनिये और रहस्य सुलझा दीजिये-
http://www.esnips.com/doc/16603360-342d-430f-8b57-471a9c846066/06-Yeh-kya-hua

Wednesday, May 14, 2008

हाईकु (त्रिपदम)


(1)

स्वर्णिम आभा
बिखेरे दिनकर
अतिसुन्दर।




(२)

पेड़ की जड़ें
माटी भीतर सींचे
जीवन डोर।


(३)

छोटा बालक
रंग और कल्पना
चित्र बनाता।
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...