देखा है मैंने
खुले आकाश के,
बांह पसारे
विस्तार को।
नदिया के रुख़ को
मचलते खेलते
बहने को।
हर उषा से
आशा की किरण को
महसूस किया है।
सलाखों के पीछे से
देख-सह-चुप रह कर
जिया है मैंने
हर दिन
हर पल को
और सराहा है उसे
जिसने मुझे यह सब
देखने दिया
चाहे सलाखों के पीछे से ही ।
11 comments:
सलाखों के पीछे से विस्तार की चाहत। सराहना की बूंद को भी सागर समझने का एहसास। अच्छे भाव हैं। नव वर्ष मंगलमय हो।
नए साल का सलाम...
संतोषी प्रवृत्ति
नए साल की ढेरों शुभकामनाएँ अर्बुदा.
नया वर्ष आप सब के लिए शुभ और मंगलमय हो।
महावीर शर्मा
नव वर्ष की आप सभी को मेरी तरफ से शुभकामनाएँ.
आशावादी काव्य का सुन्दर रूप ... बहुत खूब !
सराहनीय़
vikram
बहुत ही बढ़िया - सर पीटता हूँ पहले क्यों नहीं पढी - मनीष
एक और बेहतरीन काव्य...
जिया है मैंने
हर दिन को
हर पल को
और सराहा है उसे
िजसने मुझे यह सब
देखने दिया
चाहे सलाखों के पीछे से ही
क्या बात है यार। जीवन के प्रति तुम्हारा नज़रिया पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा।
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