मेरे हैं सिर्फ पंख...
...और सामने खुला आकाश...
Sunday, July 29, 2007
सहलाती रही हवा
सहलाती रही हवा
रात भर,
रेत पर पड़ी सलवटें ।
भोर की लालिमा लिये,
दिन चढ़ा
सुनहरा रेगिस्तान जाग उठा ।
ठंडी हवा फिर चली
अतीत की यादें मिटा
आज को संवारती
रेत पर फेरती उंगलियां,
अद्भुद है यह दिन ।
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